Wednesday, 15 November 2017




|| आजे वल्लभ पधारियां  || 


आजे वल्लभ पधारियां  मारे आँगने रे उर मा आनन्द थाये - ३ 


मैं तो मोतीडा ना चौक पूराविया ,मैं तो कदली ना स्तम्भ छे रोपाविया -२ 

हैये हरक न माये 

आजे वल्लभ पधारियां  मारे आँगने रे उर मा आनन्द थाये - २ 

हूँ तो फुलड़ा मँगाऊ भात भात ना  , रुड़ा हर गुन्थाऊ पारिजात ना - २ 

वधावु श्री गोकुल नाम 

आजे वल्लभ पधारियां  मारे आँगने रे उर मा आनन्द थाये  - २ 

हूँ तो कर जोड़ी ने विनंती  करू,  मारा वाला ना  चरणे आ शीश धरु -२ 

उर जो मारी आये 

आजे वल्लभ पधारियां  मारे आँगने रे उर मा आनन्द थाये - २ 


Friday, 5 February 2016

|| श्री गोविन्द दामोदर माधवेति स्तोत्रम् ||



करार विन्दे न पदार विन्दम् ,
मुखार विन्दे विनिवेश यन्तम् । 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम् ,
बालम् मुकुंदम् मनसा स्मरामि ॥ १ ॥ 

वट वृक्ष के पत्तो पर विश्राम करते हुए, कमल के समान कोमल पैरो को, कमल के समान हस्त से पकड़कर, अपने कमलरूपी मुख में धारण किया है, मैं उस बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं ॥ १ ॥ 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
     गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २ ॥ 

हे नाथ, मेरी जिव्हा सदैव केवल आपके विभिन्न नामो (कृष्ण, गोविन्द, दामोदर, माधव ....) का अमृतमय रसपान करती रहे ॥ २ ॥  

विक्रेतु कामा किल गोप कन्या,
मुरारि - पदार्पित - चित्त - वृति ।
दध्यादिकम् मोहवसाद वोचद्,
 गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३  ॥ 

गोपिकाये, दूध, दही, माखन बेचने की इच्छा से घर से चली तो है, किन्तु उनका चित्त बालमुकुन्द (मुरारि) के चरणारविन्द में इस प्रकार समर्पित हो गया है कि, प्रेम वश अपनी सुध - बुध भूलकर "दही  लो दही" के स्थान पर जोर - जोर से गोविन्द, दामोदर, माधव आदि पुकारने लगी है ॥ ३ ॥

घृहे - घृहे गोप वधु कदम्बा,
सर्वे मिलित्व समवाप्य योगम् ।
पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम्,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४ ॥ 

घर - घर में गोपिकाएँ विभिन्न अवसरों पर एकत्र होकर, एक साथ मिलकर, सदैव इसी उत्तमौतम, पुण्यमय, श्री कृष्ण के नाम का स्मरण करती है, गोविन्द, दामोदर, माधव .... ॥ ४ ॥

सुखम् शयाना निलये निजेपि,
नामानि विष्णो प्रवदन्ति मर्त्याः ।
ते निचितम् तनमय - ताम व्रजन्ति,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ५ ॥

साधारण मनुष्य अपने घर पर आराम करते हुए भी, भगवान श्री कृष्ण के इन नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से ही, भगवान के स्वरुप को प्राप्त होता है ॥ ५ ॥

जिव्हे सदैवम् भज सुंदरानी, 
नामानि कृष्णस्य मनोहरानी । 
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ६ ॥

है जिव्हा, तू भगवान श्री कृष्ण के सुन्दर और मनोहर इन्ही नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण कर, जो भक्तो की समस्त बाधाओं का नाश करने वाले है ॥ ६ ॥ 

सुखावसाने तु इदमेव सारम्,
दुःखावसाने तु इद्मेव गेयम् । 
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७ ॥ 

सुख के अन्त में यही सार है, दुःख के अन्त में यही गाने योग्य है, और शरीर का अन्त होने के समय यही जपने योग्य है, हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ॥ ७ ॥

श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश,
गोपाल गोवर्धन - नाथ विष्णो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८ ॥

हे जिव्हा तू इन्ही अमृतमय नमो का रसपान कर, श्री कृष्ण , अतिप्रिय राधारानी, गोकुल के स्वामी गोपाल, गोवर्धननाथ,  श्री विष्णु, गोविन्द, दामोदर, और माधव ॥ ८ ॥

जिव्हे रसज्ञे मधुर - प्रियात्वं,
सत्यम हितम् त्वां परं वदामि ।
आवर्णयेता मधुराक्षराणि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९ ॥

हे जिव्हा, तुझे विभिन्न प्रकार के मिष्ठान प्रिय है, जो कि स्वाद में भिन्न - भिन्न है। मैं तुझे एक परम् सत्य कहता हूँ, जो की तेरे परम हित में है। केवल प्रभु के इन्ही मधुर (मीठे) , अमृतमय नमो का रसास्वादन कर, गोविन्द , दामोदर , माधव ..... ॥ ९ ॥

त्वामेव याचे मम देहि जिव्हे,
समागते दण्ड - धरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या ,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १० ॥

हे जिव्हे, मेरी तुझसे यही प्रार्थना है, जब यमराज मुझे लेने आये , उस समय सम्पूर्ण समर्पण से इन्ही मधुर नमो को लेना , गोविन्द , दामोदर , माधव ॥ १० ॥

श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते,
श्री देवकी - नन्दन दैत्य - शत्रो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११ ॥

हे प्रभु , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी , विश्व के स्वरुप , देवकी नन्दन , दैत्यों के शत्रु , मेरी जिव्हा सदैव आपके अमृतमय नमो गोविन्द , दामोदर , माधव का रसपान करती है ॥ ११ ॥

॥ जय श्री कृष्ण ॥

Govind Damodhar Madhveti Stotram

Thursday, 14 January 2016

॥ श्री कृष्णाष्टकम् ॥ 


भजे व्रजैक् मण्डनम् , समस्त पाप खण्डनम् 
स्वभक्त चित्त रञ्जनम् , सैदव नन्द नन्दम् । 
सुपिच्छ गुच्छ मस्तकम् , सुनाद वेणु हस्तकम् 
अनङ्ग रंग सागरं , नमामि कृष्ण नागरम् ॥ 1 ॥

व्रज भूमि के आभूषण , समस्त पापो का नाश करने वाले , अपने भक्तो के ह्रदय को आनंद से भरने वाले , नन्द के आनंदस्वरूप नन्दलाल  का सैदव भजन करता हूँ ।
जिनके मस्तक पर मनोहर मोर पंख के गुच्छे शोभायमान है , जिनके हाथों में सुरीली मुरली (वेणु ) है , तथा प्रेम तरंगो के सागर है , उन नट -नागर भगवान श्री कृष्ण को नमन करता हूँ ॥ 1 ॥

मनोज गर्व मोचनं ,  विशाल लोल लोचनम्
विधुत गोप शोचनम्  , नमामि पद्म लोचनम् ।
करार विन्द भूधरं , स्मिताव लोक सुन्दरम्
महेन्द्र मान दारणं , नमामि कृष्ण वारणम् ॥

काम देव के गर्व का नाश करने वाले , बड़े-बड़े चंचल नेत्रों वाले , गोप -गोपिकाओं का शोक नष्ट करने वाले , कमल समान नेत्रों वाले को नमस्कार है ।
कमल समान हाथो से गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले, मुस्कान युक्त , सुन्दर चित्तवन वाले आनंदस्वरूप , देवराज इन्द्र के गर्व का दमन करने वाले , गजराज समान भगवान श्री कृष्ण  नमस्कार है ॥ 2 ॥

कदम्बसून कुण्डलम् , सुचारू गण्ड मण्डलम्
व्रजांग नैक वल्लभं , नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतम् सुखैक दायकं , नमामि गोप नायकम् ॥ 3 ॥

कदम्ब के पुष्पो के कुण्डल धारण करने वाले , अत्यन्त सुन्दर गोल कपोलो वाले , गोपिकाओं (व्रजांगनाओं) के प्रियत्वम् , परम दुर्लभ (केवल भक्ति मार्ग से साध्य) भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ।
माँ यशोदा , नन्द एवं समस्त गोप - गोपिकाओं को परमानंद देने वाले, केवल सुख और आनंद देने वाले , गोपनायक (ग्वालो के नायक) भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ॥ 3 ॥

सैदव पाद पंकजं , मदीय मानसे निजं
दधान  मुक्त मालकम् , नमामि नन्द बालकम् ।
समस्त दोष शोषणम् , समस्त लोक पोषणम्
समस्त गोप मानसं , नमामि नन्द लालसम्  ॥ 4॥

अपने कमल स्वरुप कोमल चरणार्विन्दो को सदा मेरे मन स्थापित करने वाले, सुन्दर घुंघराले बालो वाले नन्दलाल को नमन करता हूँ ।
समस्त दोषो का नाश करने वाले , सम्पूर्ण सृष्टि का पालन करने वाले, समस्त गोप कुमारो के मन में आनंदस्वरूप रहने वाले , नंदराय जी की वात्सल्य लालसा के आधार , श्री कृष्ण को नमस्कार है ॥ 4 ॥

भुवो  भराव तारकम् , भवाब्धि-कर्ण धारकम्
यशोमति किशोरकम् , नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्त कान्त भंगिनम् , सदा सदालिसंगीनम्
दिने दिने नवं नवं , नमामि नंदसम्भवम् ॥ 5 ॥

भूमि भार उतारने वाले (असंख्य राक्षसो  और बुरी शक्तियों  नाश करने वाले), भवसागर से तारने वाले, यशोदा जी के किशोर , सबका चित्त (मन ) हरण करने वाले को नमन करता हूँ।
अतिसुन्दर मनोहारी नेत्रों वाले , सर्वदा दिव्य सखियों  से सेवित , अपने भक्तो को नित्य नये-नये प्रतीत होने वाले , नन्दलाल को नमस्कार है ॥ 5 ॥

गुणाकरं सुखाकरं , कृपाकरं कृपापरं
सुरद्वि-षन्नि-कन्दनम् , नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीन - गोप - नागरम् , नवीन- केलि - लम्पटं
नमामि मेघ सुन्दरम् , तडित्प्रभा - लसत्पटम् ॥ 6 ॥

समस्त गुणों से परिपूर्ण सुख प्रदान करने वाले , कृपा करने वाले, कृपा करने में तत्पर (अपने भक्तो को सदैव सम्पूर्ण आनंदरस का दान देने में तत्पर ), देवताओ की समस्त बाधाओ का नाश करने वाले , गोप नन्दन को नमस्कार है ।
नवीन गोप सखा के साथ नित्य नये - नये खेल खेलने के लिए ललाईत  , घनश्याम अंग वाले ,  और चमकती बिजली के समान सुन्दर पिताम्बर धारण करने वाले , भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ॥ 6 ॥

समस्त गोप नन्दनम् , हृदम् - बुजैक मोदनं
नामानि कुञ्ज मध्यगं , प्रसन्न भानु शोभनम् ।
निकाम - काम दायकं , दृगन्त चारु सायकं
रसाल वेणु गायकं , नमामि कुंजनायकम् ॥ 7 ॥

समस्त गोप-गोपिकाओं को प्रसन्न करने वाले , हृदय कमल को प्रफुल्लित करने वाले , कुंज (वृंदावन के उपवन ) के मध्य विराजमान , आनन्द से भरपूर , सूर्य समान प्रकाश से शोभायमान , भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ।
अपने भक्तो की सभी अभिलाषायें पूर्ण करने वाले , जिनकी एक झलक तीर के समान है , (अर्थात एक झलक मात्र से भक्तो के हृदय को प्रेम से घायल करने वाले ), मधुर मुरली सुनाने वाले , कुंज (वृन्दावन) के नायक , भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ॥ 7 ॥

विदग्ध गोपिका मनो,  मनोज्ञ - तल्प शायिनम्
नमामि कुञ्ज कानने,  प्रवृद्ध वन्हि पायिनम् ।
किशोर कांति रंजितम्, दृअगंजनं सुशोभितं
गजेन्द्र मोक्ष कारिणं,  नमामि श्री विहारिणम् ॥ 8 ॥

चतुर गोपिकाओं के मन की मनोरम - शैया पर शयन करने वाले , व्रज भक्तो के विरह की ताप अग्नि का पान करने वाले, भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ।
अपनी किशोरावस्था की अद्भुत आभा बिखेरने वाले , जिनके नेत्र अंजन (काजल) से शोभायमान है, जो गजराज को मोक्ष प्रदान करने वाले है, तथा जो माता लक्ष्मी,  (श्री) के साथ विहार करने वाले है, ऐसे भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है ॥ 8 ॥

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्ण सत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ।
प्रमाणिकाष्ट - कद्वयं , जापत्यधीत्य यः पुमान
भवेत्स नन्दनन्दने , भवे भवे सुभक्तिमान ॥ 9 ॥

जहाँ कहीं भी, जैसी भी परिस्थिति में रहूँ , सदा भगवान श्री कृष्ण की आनंदरस कथाओं को गाता रहूँ, बस ऐसी कृपा बनी रहे ।
जो भक्त इस द्विअष्टक का रसपान करता  है , उस पर हर जन्म में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति की कृपा बनी रहती है ॥ 9 ॥ 

Shri Krishnakashtakam